आप सभी यह जानते हैं कि भाषा हमें सोचने तर्क करने,विश्लेषण करने,अपने विचारों को व्यवस्थित करने निष्कर्ष निकालने जैसी मानसिक प्रक्रियाओं के काबिल बनाती है।यह सभी प्रक्रियाएँ सीखने-सीखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।इस प्रकार भाषा सभी विषयों के सीखने में बुनियाद का काम करती है।
जो बच्चे प्रारंभिक कक्षाओं में भाषायी कौशल सीखने में पिछड़ जाते हैं,वे आगे की कक्षाओं में पिछड़ते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे यह फासला बढ़ता ही चला जाता है।इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है,कि बच्चे प्रारंभिक कक्षाओं में ही पढ़नेऔर लिखने के बढ़िया कौशल अर्जित करले।
हैलिडे के अनुसार-जब बच्चे भाषा सीखते हैं तो वे बहुत सारे विकल्पों में से सिर्फ एक ही चीज नहीं सीख रहे होते हैं,बल्कि सीखने के आधारशिला सीख रहे होते हैं।
भाषा सीखने का माध्यम है।भाषा के माध्यम से ही हम सोंचना,विश्लेषण करना,निष्कर्ष निकालना,समस्याओं को हल करना,विचारों को व्यवस्थित करना और तर्क करना जैसी मानसिक क्रियाएँ करते हैं,जो सीखने की प्रक्रियाओं का मूल आधार है।स्कूलों में साक्षरता विकास केसुनने,बोलने,पढ़नेऔर लिखने के कौशलों में विभाजित किया जाता है।
लेकिन असल में सोंचना,तर्क करना,विश्लेषण कर पाना आदि सुनने,बोलने,पढ़ने और लिखने के अभिन्न अंग है।भाषा अन्य विषयों की तरह केवल एक विषय ही नहीं है,ये सभी विषयों को सीखने का आधार है।इसलिए आवश्यक है कि प्रारंभिक कक्षाओं में बच्चों के भाषायी कौशलों के सुदृढ़ किया जाए।कक्षा में भाषा और साक्षरता शिक्षण की प्रक्रिया कैसी होगी,यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कक्षा में बच्चों के लिए किस तरह की दक्षताओं का निर्धारण करते हैं।
प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा शिक्षण के अपेक्षित अधिगम लक्ष्य कुछ इस प्रकार हैं-
🔘 बच्चे सुनकर समझ सकें और प्रतिक्रिया दे सकें।
🔘 आत्मविश्वास के साथ अपनी बात,राय,तर्क या अनुभनव बता सकें
🔘 अपने स्तर के पाठ को प्रवाहपूर्वक पढ़कर समझें।
🔘 शब्दों और वाक्यों को सुनकर लिखें।
🔘 3 से 4 वाक्यों में अपने विचारों को लिखें।
प्रारंभिक भाषा कक्षाओें में बच्चों के निम्न उपलब्धि स्तर का कारण-
देश भर में हो रहे विभिन्न साक्षरता सर्वेक्षणों (असर, NAS) के आँकड़े यह दर्शाते हैं,कि कक्षा-3 में पहुचने वाले कई बच्चे अपनी कक्षा स्तर के सरल पाठ को पढ़कर समझ पाने में सक्षम नहीं है। बच्चों में निम्न उपलब्धि स्तर का कारण मुख्यत: भाषा शिक्षण की प्रक्रियाओं तथा शैक्षणिक व्यवस्था से संबंधित है।जिसे निम्न कारणों से दूर किया जा सकता है-
(1) बच्चों को कक्षा में बोलने के अधिक से अधिक अवसर मिलना चाहिए।
(2) पढ़ना सिखाते समय शब्दों के अर्थ समझने पर पूरा- पूरा जोर दिया जाना चाहिए। (3) वर्ण और शब्द पहचान(डिकोडिंग) का पूर्णत: व्यवस्थित शिक्षण होना चाहिए।
(४) स्कूलों में चलाये जाने वाले सभी कौशल आधारित कार्यक्रमों (जैसे-बालसभा) में बच्चों की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए।
(5) भाषा शिक्षण केवल पाठ्यपुस्तक पर आधारित न होकर भाषा सीखने की विभिन्न गतिविधियां क्रियान्वयन में लाना चाहिए।
(6) भाषा शिक्षण हेतू बच्चों के अनुरुप सरल और रोचक सामग्री की उपलब्धता।
हमारे सरकारी स्कूलों में ज्यादातर बच्चे वंचित परिवारों से आते हैं। ये बच्चे जब स्कूल में दाखिला लेते हैं तो वे सामाजिक,बौध्दिक,भावनात्मक,भाषायी दृष्टि से अलग-अलग होते हैं।इसके चलते हमें प्राथमिक कक्षाओं में बहुत अधिक असमानता देखने को मिलती है।यह असमानता मुख्यत: निम्न रुपों में समझी जा सकती है-
(1) कई बच्चों की घर की भाषा स्कूल की भाषा से अलग होना।
(2) कई बच्चों का रोजाना स्कूल न आना।
(3) पूर्व प्राथमिक कक्षाओं का अनुभव न होना।
(4) असाक्षर और अल्पसाक्षर घरों से आने वाले बच्चों में पढ़ने और लिखने के उद्देश्य और लिखित सामाग्री का कोई अनुभव न होना।
सभी बच्चों को सीखने के समान अवसर मिले और सभी बच्चे सीखें यह सुनिश्चित करने के लिए हम कक्षाओं में निम्न बदलाव ला सकते हैं
🔘 बच्चों के घर की भाषा को कक्षा में उपयोग करना एवं उनके अनुभवों को कक्षा में स्थान देना। 🔘 सभी बच्चों को जरुरत के अनुसार व्यक्तिगत रुप से समय देना।
🔘 अभिभावकों से मिलकर उन्हें बच्चों के कार्य प्रगति के बारे में अवगत कराना।
हमें अनिवार्य रुप से ऐसे पाठ्यक्रम और शैक्षणिक योजनाएँ बनानी होंगी जिससे प्रत्येक बच्चे में पढ़ने-लिखने के सुदृढ़ कौशल विकसित हो सके,चाहे बच्चे किसी भी सामाजिक वर्ग या समुदाय से आते हों और चाहे उनके माँ-बाप की शिक्षा या घर की परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों न हो।सभी बच्चों के लिए भाषायी शिक्षण अनिवार्य व्यवस्था होना चाहिए।
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